Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022... रिश्तों की बदलतीं तस्वीर..(15)

विनी... अब तो बता यार...आखिर हम जा कहाँ रहें हैं...। 

रवि से मिलने....। 

व्हाट.... क्या कहा तुने..! 

वहीं जो तुने सुना...। 

विनी... तु पागल हो गई हैं क्या...। इस तरह मम्मी पापा को बिना बताये.. तुने... कब और कैसे रवि से मिलने का प्लान बना दिया...!! 

तुझे मिलना हैं की नहीं... वो बोल... नहीं तो मैं मिल आतीं हूँ... तु जा घर वापस...। अरे यार हद करतीं है तु भी.. वो बेचारा कल इतनी दूर से मिलने तुझसे आया... और तुने क्या किया... दो मिनट भी ठीक से उससे बात नहीं की... ओर भगा दिया...। इसलिए मैने कल रात को फिर से प्लान बनाया.... ओर अभी हम वहीं जा रहे हैं..। रहीं बात...अंकल आंटी को बताने की तो उसकी टेंशन तु मत ले... वो तुझे कुछ नहीं बोलेंगे...। 

कुछ नहीं बोलेंगे.... मैं... अच्छे से जानती हूँ.. मम्मा को उनको जब पता चला ना तो मेरी जान ही ले लेनी हैं.....। 

डोंट वैरी यार.. कुछ नहीं होगा...। अभी फिलहाल तु... उनके बारे में सोचना बंद कर ओर रवि के बारे में सोच...। उससे अच्छे से मिल ओर अपनी इस मुलाकात को यादगार बना ले...। 

विनी तु भी ना कभी कभी हद कर देतीं हैं...। मुझे यहाँ टेंशन हो रहीं हैं.... और तुझे....। 

बस कर यार.. कितना डरती हैं...। वैसे ये बता अंकल आंटी को पता कैसे चलेगा... ना तु उन्हें बताएगी.. ना मैं...। तो फिर...। 

तेरा मतलब क्या हैं... हम उन्हें बताए ही नहीं..! 

जी... महारानी... ये ही मेरा मतलब हैं...। हर बात बतानी जरुरी नहीं होतीं....। 

ऐसा कैसे यार... ये तो गलत हैं... वो लोग जब मुझसे कुछ नहीं छुपाते तो फिर मैं कैसे...। 

विनी मुस्कुराते हुए... गलतफहमी में मत रह मेरी जान... हर कोई हर किसी को सब कुछ नहीं बताता...। ओर अब इस बारे में बिलकुल बहस नहीं... हम बस पहुंचने ही वाले हैं.. । अच्छी शक्ल बना ओर इस लम्हें को जी...। 



वही दूसरी ओर... 
कुछ देर बाद वो औरत रमादेवी को अपने साथ वृद्धाश्रम के बिल्कुल सामने एक आश्रम में ले गई....। ये आश्रम स्पेशल चाइल्ड बच्चों का था...। रमादेवी जैसी कुछ ओर महिलाएं भी वहाँ तरह तरह के काम करतीं थीं...। कोई बच्चों को पढ़ाता था तो कोई उनके साथ खेल खेलता था... तो कोई बच्चों के लिए खाना बनाता था..। जिनके माँ बाप ऐसे बच्चों की देखभाल करने में सक्षम नहीं होते थे...या जिनके पेरेंट्स नौकरीपेशा थे....वो अपने बच्चों को यहाँ पूरे दिन के लिए छोड़ कर जाते थे ओर शाम ढलने के बाद वापस ले जाते थे..। एक तरह से वो आश्रम ट्रस्ट पर चल रहा था..। वृद्धाश्रम की तरह वो आश्रम भी कुछ लोगों के ट्रस्ट पर चल रहा था..। लेकिन वृद्ध लोगों को समय काटने के लिए ओर बच्चों को भी अपनापन मिलता रहें... इसलिए दोनों मिलकर काम करते थे...। इस बात पर कभी किसी ने कोई आब्जेक्शन भी नहीं उठाया था..। जिन बच्चों की जिम्मेदारी उनके पेरेन्ट्स नहीं लेते थे वो बच्चे वहीं रहते थे... बाकी बच्चे अपने घर चले जाते थे...अगले दिन फिर से आने के लिए....। 


रमादेवी का ये सफर कैसा रहेगा... जानते हैं अगले भाग में...। 



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7 Comments

Barsha🖤👑

24-Sep-2022 10:08 PM

Beautiful

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Seema Priyadarshini sahay

24-Sep-2022 07:02 PM

बेहतरीन

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Mithi . S

24-Sep-2022 06:18 AM

Bahot sunder rachna

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